17 मई, 2010













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1947 के बाद, 62 सालों में एक बार सूखे का स्थायी हल खोजने की कोशिश हुई थी. राजीव गांधी के समय, पंजाब के हरिकेन बांध से जो इंदिरा-गांधी नहर गडरा (बाड़मेर) तक आनी थी, उसे भी केंद्रीय सत्ता में बैठी ताकतों ने अपने फायदे के लिए मोड़ लिया. नहर को गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर से होकर करीब 800 किमी का रास्ता तय करना था, जैसे ही यह 300 किमी दूर बीकानेर पहुंची वैसे ही तत्कालीन कपड़ा मंत्री अशोक गहलोत (अबके मुख्यमंत्री) ने पाइपलाइन का रुख जोधपुर की कायलाना झील की तरफ करवा दिया. इससे पहला फायदा महाराजा गजोसिंह को हुआ और झील का पट्टा आज भी उन्हीं के नाम चढ़ा हुआ है. पानी पहुंचते ही पर्यटन का उनका धंधा लहलहा उठा, होटल तो था ही, हुजूर ने ‘वाटर रिसोर्स सेंटर’ के नाम पर महल भी बनवा लिया. अशोक गहलोत, जो खुद भी माली जाति और जोधपुर इलाके से हैं, उन पर ‘माली लॉबी’ के दबाव में काम करने का आरोप लगा क्योंकि पाइपलाइन मोड़ने का दूसरा फायदा माली जाति के कुओं को रिचार्ज करने में हुआ. लिहाजा असली प्रभावितों की आंखे बेवफा बादलों को घूरती रह गई.

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