06 जनवरी, 2010



3


कलम्ब, उस्मानाबाद, महाराष्ट्र


4 दिसंबर, 2008


- - - -


एक रोज इन औरतों ने चर्चा में पाया कि जब तक जमीनों से फसल नहीं लेंगे तब तक रोज-रोज की मजूरी के भरोसे ही बैठे रहेंगे। अगले रोज सबके भरोसे में उन्होंने अपना-अपना भरोसा जताया और गांव से बाहर बंजर पड़ी अपनी जमीनों पर खेती करने की हिम्मत जुटायी। जैसे कि आशंका थी, गांव में दबंग जात वालों के अत्याचार बढ़ गए। उन्होंने सोचा कि जो कल तक हमारे गुलाम थे, वो अगर मालिक बने तो उनके खेत कौन जोतेगा ? पंचायत चलाने वाले ऐसे बड़े लोगों ने खूब धमकियां दीं। मगर अब ये अकेली नहीं थीं, संगठन के बहुत सारी औरतें भी तो इनके साथ थीं। इसलिए इन्होने आगे आकर ललकारा कि 'अगर तुम अपनी ताकत अजमाओगे, हमारे पतियों को मारोगे, तो हम भी दिखा देंगे कि हम क्या कर सकते हैं ?’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें